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Meera Bai Ka Jeevan Parichay &#; मीरा बाई सोलहवीं शताब्दी की एक विख्यात आध्यात्मिक कवित्री थी. यह एक परम कृषण भक्त थी. इनके दुवारा लिखे गए भजन आज भी लोगों के मन में बसा हुआ हैं. मीरा बाई के बारे में अनेक प्रकार की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. मीरा ने भगवान कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गई थी. मीरा बाई की रचनाओं के लेकर अनेक मतभेद हैं. कुछ विद्वान का मानना हैं. की कुछ कविताएँ तो मीराबाई दुवारा लिखी गई हैं. लेकिन कुछ रचनाएँ 18 वी शताब्दी की लिखी हुई लगती हैं. यह हो सकता हैं, की मीरा की प्रशंशक दुवारा कुछ कविताएँ लिखी गई हैं.

Meera Bai Ka Jeevan Parichay &#; मीरा बाई की जीवनी

मीराबाई के जन्म से संबंधित कोई भी विश्वसनीय दस्तावेज़ नहीं मिले हैं. विद्वानों ने कई अन्य दुसरो स्रोत से इनके जीवन के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने की कोशिश की हैं. इन दस्तावेजों के अनुसार मीराबाई का जन्म में राजस्थान के मेड़ता में एक राजपरिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम रतन सिंह था. जो एक छोटे से राजपूत रियासत के राजा थे. मीराबाई अपने माता – पिता की एकलोती संतान थी. मीराबाई के दादा के देख – रेख में इनका पालन पोषण हुआ था. मीराबाई के दादा भगवान विष्णु के बहुत ही बड़े भक्त थे. इसलिए उनके यहाँ साधू – संतो का आना जाना लगा ही रहता था.

में मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोज राज के साथ हुई

मीरा बाई

जन्म: , मेड़ता, राजस्थान

मृत्यु:

कार्यक्षेत्र: कवियित्री, महान कृष्ण भक्त

मीरा बाई एक मध्यकालीन हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और कृष्ण भक्त थीं। वे भक्ति आन्दोलन के सबसे लोकप्रिय भक्ति-संतों में एक थीं। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित उनके भजन आज भी उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हैं और श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं। मीरा का जन्म राजस्थान के एक राजघराने में हुआ था। मीरा बाई के जीवन के बारे में तमाम पौराणिक कथाएँ और किवदंतियां प्रचलित हैं। ये सभी किवदंतियां मीराबाई के बहादुरी की कहानियां कहती हैं और उनके कृष्ण प्रेम और भक्ति को दर्शाती हैं। इनके माध्यम से यह भी पता चलता है की किस प्रकार से मीराबाई ने सामाजिक और पारिवारिक दस्तूरों का बहादुरी से मुकाबला किया और कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गयीं। उनके ससुराल पक्ष ने उनकी कृष्ण भक्ति को राजघराने के अनुकूल नहीं माना और समय-समय पर उनपर अत्याचार किये।

स्रोत:

भारतीय परंपरा में भगवान् कृष्ण के गुणगान में लिखी गई हजारों भक्तिपरक कविताओं का सम्बन्ध मीरा के साथ जोड़ा जाता है पर विद्वान ऐसा मानते हैं कि इनमें से कुछ कवितायेँ ही मीरा द्वारा रचित थीं बाकी की कविताओं की रचना 18वीं शताब्दी में हुई प्रतीत होती है। ऐसी ढेरों कवितायेँ जिन्हें मीराबाई द्वारा रचित माना जाता है, दरअसल उनके प्रसंशकों द्वारा लिखी मालूम पड़

मीरा बाई की जीवनी (Mira Bai Biography In Hindi) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। पढ़िए Mira Bai Ka Jivan Parichay 

मीराबाई भारतीय भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख संत और कवयित्री थीं। उन्होंने अपने गीतों और कविताओं के माध्यम से भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अटूट भक्ति और प्रेम का प्रदर्शन किया। मीराबाई का जीवन संघर्ष, भक्ति, और समर्पण की एक अद्भुत कहानी है।

Mira Bai Biography In Hindi 

मीरा बाई का प्रारंभिक जीवन

मीराबाई का जन्म ईस्वी में राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। उनके पिता रत्न सिंह राठौर एक राजपूत राजा थे। मीराबाई के बचपन से ही भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति थी। कहा जाता है कि मीराबाई ने बहुत छोटी उम्र में ही कृष्ण को अपना आराध्य मान लिया था। उनकी भक्ति और समर्पण का मुख्य कारण उनके परिवार में भक्ति और धार्मिकता का वातावरण था।

मीरा बाई का विवाह और पारिवारिक जीवन

मीराबाई का विवाह चित्तौड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ था। भोजराज महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के बाद भी मीराबाई का भक्ति मार्ग जारी रहा। उन्होंने अपना अधिकांश समय कृष्ण की पूजा और भजन-कीर्तन में व्यतीत किया। मीराबाई के पति और ससुरालवालों को उनका भक्ति मार्ग पसंद नहीं था, लेकिन मीराबाई ने अपने आराध्य के प्रति अपनी निष्ठा को कभी कम नहीं होने दिया।

मीरा बाई का संघर्ष और विरोध

मीराबाई को अपने ससुराल में का

मीराबाई की रचनाएँ, जीवन परिचय, कला पक्ष, भाव पक्ष, साहित्य में स्थान | meera ki Rachnaye

जीवन परिचय

मीराबाई की रचनाएँ | Meera ki Rachnaye | Mirabai ki Rachnaye

मीरा ने स्वयं कुछ नहीं लिखा । कृष्ण के प्रेम में मीरा ने जो गाया वो बाद में पद मे संकलित हो गए ।

  1. राग सोरठा
  2. नरसीजी रो मायारा
  3. मीरा की मल्हार
  4. मीरा पदावली
  5. राग गोविंद
  6. गीत गोविंद
  7. गोविंद टीका

मीराबाई के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें&#; मीरा बाई का संपूर्ण जीवन परिचय, कला पक्ष, भाव पक्ष, साहित्य में स्थान

बचपन से ही मीरा कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी । पति की मृत्यु के बाद परिवार वालों ने उसे मारने के कई प्रयास किए । इन सभी कारणों से मीरा बाई परेशान होकर मेवाड़ त्याग दिया और द्वारिका जाकर कृष्ण भक्ति में जीवन व्यतीत करने लगी ।

यह कहा जाता है की मीरा यहीं भजन गाते- गाते मीरा कृष्ण जी की मूर्ति में समा गई । यह घटना सन की बताई जाती है ।

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