Dhruvswamini biography of abraham

हिंदी नाटक और एकांकी/ध्रुवस्वामिनी

ध्रुवस्वामिनी नाटक में स्त्री अस्मिता की प्रतिष्ठा बताओ!

प्रसाद जी हिन्दी के नि:संदेह अकेले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति, समृद्धि, शक्ति और औदात्म का आस्वर चित्र प्रस्तुत किया है। कलात्मक उत्कर्ष की दृष्टि से प्रसाद जी के सर्वत्रमुख नाटक तीन हैं&#;: स्कन्दगुप्त, चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी। लेकिन उनकी ख्याति के शिखर पर निश्चय ही ध्रुवस्वामिनी खड़ा है। ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद का अंतिम नाटक है। इसमें उनके अन्य नाटकों जैसी कविता की भावुकता और संवादों में वैसी दुरूहता नहीं है। अपने जीवंत संवादों और सुगठित कथावस्तु के कारण यह नाटक अत्यंत प्रभावशाली और मनोपयोगीहो गया है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी शक्ति प्रसाद जी के उस क्रांतिकारी दृष्टिकोण में निहित है जो इस नाटक के माध्यम से व्यक्त हुआ है और वह यह है कि नारी पुरुष की क्रीत दासी नहीं है। पुरुष यदि क्लीव (नपुंसक), कायर और व्यभिचारी है तो नारी न केवल उसके विरुद्ध विद्रोह ही कर सकती है, उसका परित्याग करके अपने प्रिय पुरुष का वरण कर उससे पुनर्विवाह भी कर सकती है। यह बात भारतीय समाज के लिए, खासतौर से उस समय जब यह नाटक लिखा गया था, कल्पना से भी परे थी।

‘ध्रुवस्वामिनी नाटक में गुप्त साम्राज्य की उस अवस्था का चित्रण हुआ है, जब शासन की बागडोर एक कायर, क्लीव और व्यभिचारी राजा रा

ध्रुवस्वामिनी (नाटक): जयशंकर प्रसाद

तृतीय अंक : ध्रुवस्वामिनी

(शक-दुर्ग के भीतर एक प्रकोष्ठ। तीन मंचों में दो खाली और एक पर ध्रुवस्वामिनी पादपीठ के ऊपर बाएँ पैर पर दाहिना पैर रखकर अधरों से उँगली लगाए चिन्ता में निमग्न बैठी है। बाहर कुछ कोलाहल होता है।)

सैनिक : (प्रवेश करके) महादेवी की जय हो!

ध्रुवस्वामिनी : (चौंककर) क्या!

सैनिक : विजय का समाचार सुनकर राजाधिराज भी दुर्ग में आ गए हैं। अभी तो वे सैनिकों से बातें कर रहे हैं। उन्होंने पूछा है, महादेवी कहाँ हैं? आपकी जैसी आज्ञा हो, क्योंकि कुमार ने कहा है !

ध्रुवस्वामिनी : क्या कहा है? यही न कि मुझसे पूछकर राजा यहाँ आने पावें? ठीक है, अभी मैं बहुत थकी हूँ। (सैनिक जाने लगता है, उसे रोककर) और सुनो तो! तुमने यह नहीं बताया कि कुमार के घाव अब कैसे हैं?

सैनिक : घाव चिन्ताजनक नहीं हैं। उन पर पट्टियाँ बँध चुकी हैं। कुमार प्रधान-मंडप में विश्राम कर रहे हैं।

ध्रुवस्वामिनी : अच्छा जाओ। (सैनिक का प्रस्थान)

मन्दाकिनी : (सहसा प्रवेश करके) भाभी! बधाई है। (जैसे भूलकर गई हो) नहीं, नहीं! महादेवी, क्षमा कीजिए।

ध्रुवस्वामिनी : मन्दा! भूल से ही तुमने आज एक प्यारी बात कह दी। उसे क्या लौटा लेना चाहती हो? आह! यदि वह सत्य होती?

(पुरोहित का प्रवेश)

मन्दाकिनी : क्या इसमें भी सन्देह है?

ध्रुवस्वामिनी : मुझे तो सन्देह का

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ध&#;र&#;वस&#;व&#;म&#;न&#; क&#; चर&#;त&#;र च&#;त&#;रण क&#;ज&#;य&#; (Dhruvswamini ka Charitra Chitran)

ध&#;र&#;वस&#;व&#;म&#;न&#; क&#; चर&#;त&#;र च&#;त&#;रण क&#;ज&#;य&#; (Dhruvswamini ka Charitra Chitran)

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